अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक अहम घोषणा करते हुए कहा है कि अमेरिका और चीन के बीच नई व्यापारिक समझौता (Trade Deal) तय हो गया है। इस समझौते के तहत चीन अब अमेरिका को रेयर अर्थ मिनरल्स और मैग्नेट्स की पूरी आपूर्ति करेगा, जबकि अमेरिका चीनी छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए वीज़ा जारी करने में सहूलियत देगा।
क्या है इस डील में खास?
रेयर अर्थ मिनरल्स (Rare Earth Minerals) जैसे कि नीओडिमियम, लैन्थनम और सेरियम अत्यंत महत्वपूर्ण धातुएं हैं, जो मोबाइल फोन, इलेक्ट्रिक वाहन, पवन ऊर्जा टरबाइन और सैन्य तकनीकों में इस्तेमाल होती हैं। इन पर चीन का लगभग 60-70% वैश्विक नियंत्रण है, जिससे अमेरिका और अन्य देश चिंतित रहे हैं।
इस समझौते के मुख्य बिंदु:
- चीन अमेरिका को रेयर अर्थ मिनरल्स और जरूरी मैग्नेट्स की आपूर्ति करेगा।
- अमेरिका चीनी छात्रों को कॉलेज और विश्वविद्यालयों में पढ़ाई की अनुमति देगा।
- टैरिफ के मामले में अमेरिका 55% शुल्क वसूलेगा, जबकि चीन को 10% शुल्क की छूट मिलेगी।
हालांकि, टैरिफ को लेकर स्पष्ट विवरण अभी सार्वजनिक नहीं किया गया है और इसकी समीक्षा दोनों देशों की शीर्ष नेतृत्व टीम करेगी।
ट्रेड वार में यह डील क्यों अहम है?
बीते कुछ वर्षों में अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध गहराता जा रहा था, जिसमें दोनों देश एक-दूसरे के उत्पादों पर भारी टैरिफ लगा रहे थे। रेयर अर्थ पर चीन की निर्भरता और आपूर्ति में देरी ने अमेरिकी उद्योगों को काफी नुकसान पहुँचाया था।
इस डील से:
- अमेरिकी टेक्नोलॉजी सेक्टर को राहत मिलने की उम्मीद है।
- रेयर अर्थ के लिए चीन की निर्भरता को एक सीमित नियंत्रण में लाने की कोशिश हुई है।
- चीनी छात्रों के लिए अमेरिका में उच्च शिक्षा का रास्ता आसान हुआ है, जिससे विश्वविद्यालयों को भी लाभ होगा।
वार्ता कहां और कैसे हुई?
यह बातचीत लंदन के ऐतिहासिक Lancaster House में आयोजित की गई थी, जहां दोनों देशों के वरिष्ठ अधिकारी आमने-सामने आए।
- अमेरिका की ओर से वाणिज्य मंत्री हावर्ड लूटनिक और वित्त सचिव स्कॉट बेसेंट शामिल हुए।
- चीन की ओर से उप-प्रधानमंत्री और शीर्ष व्यापार वार्ताकार ने हिस्सा लिया और कहा कि बीजिंग अब सहयोग को और मजबूत करने को तैयार है।
इससे पहले जिनेवा में हुई वार्ता के दौरान दोनों देशों ने अस्थायी रूप से टैरिफ कम करने और कुछ आपूर्ति बहाल करने पर सहमति जताई थी, लेकिन उसका प्रभाव सीमित था।
क्या यह अंतिम समझौता है?
फिलहाल यह समझौता प्रारंभिक रूप से तय हुआ है और इसे वॉशिंगटन और बीजिंग की शीर्ष नेतृत्व टीमों से अंतिम मंजूरी मिलनी बाकी है। अमेरिकी अधिकारियों ने उम्मीद जताई है कि जैसे-जैसे यह समझौता लागू होगा, वैसे-वैसे इससे जुड़ी जटिलताएं भी सुलझती जाएंगी।
निष्कर्ष: क्या यह डील टिकाऊ साबित होगी?
यह समझौता निश्चित तौर पर दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच व्यापारिक तनाव को कम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। लेकिन इसका वास्तविक असर अगले कुछ महीनों में ही दिखाई देगा, जब यह देखा जाएगा कि क्या चीन वाकई आपूर्ति की रफ्तार तेज करता है और अमेरिका अपनी प्रतिबद्धताओं पर कायम रहता है।
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