असीटिक वाइल्ड डॉग का लौटना: असम के काजीरंगा में फिर दिखा दुर्लभ धोले

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असीटिक वाइल्ड डॉग का लौटना

असीटिक वाइल्ड डॉग, जिसे भारतीय वन कुत्ता या धोला (dhole) कहा जाता है, लंबे समय बाद फिर काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में देखा गया है। यह प्रजाति पहले यहां लगभग समाप्त मानी जाती थी, लेकिन हाल ही में कैमरा ट्रैप और फील्ड निगरानी से इसकी पुष्टि हुई है। यह खोज न सिर्फ जंगल के जैव‑विविधता के लिए राहत है, बल्कि संरक्षण प्रयासों की सफलता का संकेत भी देती है।


असीटिक वाइल्ड डॉग का लौटना – क्या मिला वैज्ञानिकों को?

काजीरंगा में हाल की कैमरा‑ट्रैप सर्वे तथा फुट-पैट्रॉल रिपोर्ट्स में दर्ज हुआ कि धोले का एक झुंड फिर से पार्क में घूमता मिला है। पूर्व में इसे लुप्त‍प्राय घोषित किया गया था, लेकिन सितंबर 2025 में मिले वीडियो‌ और छवियों से स्पष्ट हुआ कि यह प्रजाति अब एक बार पुनः स्थापित होती दिख रही है।


असीटिक वाइल्ड डॉग: धोले की पहचान और जीवनशैली

असीटिक वाइल्ड डॉग या धोले की विशेषताएँ:

  • वैज्ञानिक नाम: Cuon alpinus
  • आकार: लगभग 90 सेमी लंबा, 10–20 किलोग्राम वजन
  • शारीरिक पहचान: गहरी लाल-भूरे रंग का कोट, काला झाड़ीदार पूंछ, बड़ी गोल कान
  • आदतें: सामाजिक जीवन, झुंड में शिकार, दिन में सक्रिय

ये झुंड सामान्यतः 12–40 सदस्यों के होते हैं, जिसमें कई मादाएँ भी होती हैं ।


असीटिक वाइल्ड डॉग का लौटना – क्या मायने रखता है?

  • जैव विविधता की बहाली: काजीरंगा वन्यजीवों के वर्ग – rhino, tiger, elephant, deer – को समर्थन मिलने के बाद यहाँ पुनः एक अन्य प्रमुख शिकारी की वापसी जैवीय संतुलन को मजबूत बनाएगी।
  • संरक्षण की कामयाबी: धोले की यह वापसी असम सरकार, काजीरंगा वन विभाग और Project Tiger के संरक्षण प्रयासों की सफलता का प्रमाण है.
  • नैतिक जिम्मेदारी: जैसे संरक्षण कामयाब रहा, वैसे ही आगे भी anti-poaching, कन्नाबेर तथा झुंडों के लिए पर्याप्त निवास सुनिश्चित करना होगा.

असीटिक वाइल्ड डॉग: चुनौतियाँ और खतरे

आवास का दबाव (Habitat Loss)

वनों का कटाव, कृषि विस्तार और बस्तियों के कारण धोले और उनके शिकार का ठिकाना घटा है ।

घरेलू कुत्तों से संक्रमण

कभी‑कभी स्थानीय घरों में घूमने वाले कुत्तों से बीमारियां फैल सकती हैं।

मनुष्यों के साथ संघर्ष

शिकार के कारण कभी झुंड पर हमले की घटनाएँ हुई हैं, जिससे गाँवों में डर बना होता है।


असीटिक वाइल्ड डॉग की वापसी – क्या करना चाहिए?

  • विशेष सर्वेक्षण और निगरानी: स्थानीय टीमों को ग्रामीण इलाकों में भी तैनात किया जाए ताकि झुंड का व्यवहार समझा जा सके।
  • जनजागरूकता अभियान: स्थानीय समुदायों को इस खास शिकारी की महत्ता और संरक्षण की आवश्यकता बताकर पारदर्शिता बढ़ाएं।
  • पैथोजेन प्रबंधन: बीमारियों से निपटने के लिए vaccination और कैनाइन संक्रमण की रोकथाम जरूरी है।
  • इंटीग्रेटेड संरक्षण नीति: Project Tiger और वन्यजीव योजनाओं में धोले को विशेष प्राथमिकता दें।

FAQs – असीटिक वाइल्ड डॉग (धोले) की वापसी

फोकस कीवर्ड के साथ

Q1. असीटिक वाइल्ड डॉग काजीरंगा में क्यों प्रासंगिक है?
यह ‘असीटिक वाइल्ड डॉग का लौटना’ जैव विविधता की बहाली और संरक्षित क्षेत्र की क्षमता को दर्शाता है।

Q2. असीटिक वाइल्ड डॉग की पहचान कैसे करें?
लाल‑भूरे कोट, झाड़ीदार काली पूंछ, गोल कान और झुंड में सामाजिक व्यवहार प्रमुख पहचान हैं।

Q3. असीटिक वाइल्ड डॉग का लौटना किस तरह संरक्षण प्रयासों को प्रभावित करेगा?
यह वापसी संकेत देती है कि काजीरंगा में संरक्षण के बाद अब बेहतर और संतुलित पारिस्थितिकी दृष्टिकोण अपनाया जा रहा है।

Q4. धोला भारतीय वन कुत्ता किसे कहते हैं?
इसे ‘धोला’ या ‘इंडियन वाइल्ड डॉग’ कहते हैं, वैज्ञानिक नाम Cuon alpinus है।

Q5. धोले की संख्या कितनी बची है?
विश्व स्तर पर कुल मिलाकर लगभग 2500 से भी कम परिपक्व धोले बचे हैं

Q6. धोला IUCN पर किस श्रेणी में है?
धोला ‘Endangered’ यानी संकटापन्न श्रेणी में है ।

Q7. धोले किन प्रमुख नदारों में पाये जाते हैं?
मध्य और पूर्वी भारत, अरुणाचल, असम, गुजरात, महाराष्ट्र के जंगलों में मिलते हैं ।

Q8. धोलों का मुख्य आहार क्या है?
ये हिरण, जंगली सूअर और मध्यम आकार के जानवरों का शिकार करते हैं और झुंड में मजबूत शिकारी होते हैं ।

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