ईरान के सहयोगी देश इस समय अंतरराष्ट्रीय राजनीति का एक बड़ा विषय बन चुके हैं, खासकर तब जब अमेरिका और इज़राइल के साथ तनाव चरम पर है। अगर भविष्य में युद्ध की स्थिति बनती है, तो यह जानना बेहद अहम है कि ईरान के पक्ष में कौन-कौन से देश या संगठन खड़े होंगे।
ईरान की विदेश नीति वर्षों से “विरोधियों का घेरा तोड़ने” और “क्षेत्रीय प्रभाव बढ़ाने” पर केंद्रित रही है। इस नीति के चलते उसने कुछ निश्चित देशों और संगठनों के साथ मज़बूत गठबंधन बनाए हैं, जिन्हें अब ईरान के सहयोगी देश माना जाता है।
ईरान के सहयोगी देश: कौन कर सकता है समर्थन?
ईरान के सहयोगी देश आमतौर पर दो हिस्सों में बंटे हैं — एक तरफ हैं बड़े राष्ट्र जैसे रूस और चीन, और दूसरी तरफ हैं कुछ क्षेत्रीय गुट और देश, जो वैचारिक और रणनीतिक रूप से ईरान के करीब हैं।
रूस और चीन की भूमिका | ईरान के सहयोगी देश
ईरान और रूस संबंध पिछले कुछ वर्षों में सैन्य और कूटनीतिक रूप से काफी मज़बूत हुए हैं। रूस ने अक्सर संयुक्त राष्ट्र में ईरान के खिलाफ प्रतिबंधों को वीटो किया है और सीरिया में ईरान के साथ मिलकर अभियान चलाया है।
वहीं चीन का समर्थन मुख्य रूप से आर्थिक और रणनीतिक स्तर पर देखा गया है। चीन, ईरान से तेल का बड़ा आयातक है और हाल ही में दोनों देशों ने 25 वर्षीय आर्थिक और सुरक्षा साझेदारी पर हस्ताक्षर किए हैं।
हालांकि दोनों ही देश खुलकर सैन्य रूप से युद्ध में शामिल नहीं होते, लेकिन वैश्विक मंचों पर ईरान के सहयोगी देश के रूप में उसकी रक्षा ज़रूर करते हैं।
हिज़बुल्लाह और शिया गुट | ईरान के सहयोगी देश
हिज़बुल्लाह और ईरान का संबंध गहरा और पुराना है। लेबनान स्थित यह शिया संगठन ईरान की क्षेत्रीय नीति का अहम हिस्सा है। यदि युद्ध छिड़ता है, तो हिज़बुल्लाह की तरफ से इज़राइल पर हमले की संभावना बनी रहती है।
इसके अलावा इराक की कई शिया मुस्लिम देश समर्थित मिलिशिया, यमन के हूती विद्रोही, और सीरिया की बशर अल-असद सरकार भी ईरान के साथ खड़ी हो सकती हैं।
खाड़ी देश क्या करेंगे? | ईरान के सहयोगी देश
खाड़ी देश की भूमिका युद्ध की स्थिति में बहुत महत्वपूर्ण होगी। हालांकि सऊदी अरब, यूएई और बहरीन पहले ईरान के विरोधी रहे हैं, लेकिन हाल के वर्षों में संबंधों में नरमी आई है।
कतर और ओमान जैसे देश मध्यस्थता की भूमिका निभा सकते हैं, लेकिन किसी सैन्य गठबंधन में शामिल होने की संभावना कम है। फिर भी कूटनीतिक समर्थन या एयरस्पेस तक पहुंच देने जैसे छोटे सहयोग संभव हैं।
अमेरिका-ईरान तनाव और क्षेत्रीय युद्ध का खतरा
अमेरिका-ईरान तनाव की शुरुआत परमाणु कार्यक्रम और क्षेत्रीय प्रभाव को लेकर हुई थी, लेकिन अब यह सीधे युद्ध की दहलीज तक पहुंच चुका है।
यदि यह तनाव युद्ध में बदलता है, तो पूरे मध्य पूर्व में युद्ध जैसी स्थिति बन सकती है, जिससे वैश्विक तेल आपूर्ति, ट्रेड और शांति पर गंभीर असर पड़ेगा।
निष्कर्ष: क्या अकेला पड़ जाएगा ईरान?
हालांकि कुछ देश और गुट ईरान के समर्थन में दिखते हैं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर पूरी तरह खुलकर सहयोग देने वाले देश बहुत कम हैं। ईरान के सहयोगी देश कूटनीतिक, आर्थिक और कुछ हद तक सैन्य रूप में उसके साथ हो सकते हैं, लेकिन पूर्ण युद्ध की स्थिति में कई सहयोगी पीछे भी हट सकते हैं।
FAQs (फोकस कीवर्ड सहित और बिना)
प्रश्न 1: ईरान के सहयोगी देश कौन-कौन हैं?
उत्तर: रूस, चीन, हिज़बुल्लाह, सीरिया, इराक की शिया मिलिशिया और यमन के हूती विद्रोही ईरान के प्रमुख सहयोगी माने जाते हैं।
प्रश्न 2: क्या रूस और चीन युद्ध में ईरान का साथ देंगे?
उत्तर: वे सैन्य रूप से नहीं, लेकिन कूटनीतिक और आर्थिक रूप से ज़रूर समर्थन करते हैं।
प्रश्न 3: खाड़ी देश किसके पक्ष में होंगे?
उत्तर: खाड़ी देशों की स्थिति संतुलन वाली रहेगी। कुछ देश जैसे कतर या ओमान मध्यस्थता की भूमिका निभा सकते हैं।
प्रश्न 4: हिज़बुल्लाह की क्या भूमिका होगी?
उत्तर: यदि युद्ध शुरू होता है, तो हिज़बुल्लाह इज़राइल पर हमले कर सकता है।
प्रश्न 5: क्या युद्ध की स्थिति में ईरान अकेला पड़ जाएगा?
उत्तर: पूरी तरह से नहीं, लेकिन खुला सैन्य सहयोग बहुत सीमित हो सकता है।